Yatha drishti tatha srishti kise kahate hain, Yatha drishti tatha srishti meaning in Hindi
भगवत गीता में कई श्लोक लिखे हुए है जिनके अर्थ प्रत्येक मनुष्य अवश्य जानने चाहिए | इसमें से एक श्लोक है यथा दृष्टि यथा सृष्टि | यह श्लोक भारत वर्ष में काफी फेमस है | आखिर क्या मतलब होता है यथा दृष्टि यथा सृष्टि का ?
यथा दृष्टि यथा सृष्टि किसे कहते हैं, इसका अर्थ, इसका मतलब जानने के लिए आप इस पोस्ट को पूरा पढ़ पढे जहां पर यथा दृष्टि यथा सृष्टि का अर्थ सरल भाषा में समझाया गया है |

यथा दृष्टि यथा सृष्टि किसे कहते हैं? (Yatha drishti tatha srishti)
यथा दृष्टि यथा सृष्टि का अर्थ यह है कि जो मनुष्य जैसा होता है वह उसी तरीके से दुनिया को देखता है | इस दुनियाँ में लोग अलग-अलग प्रकार के होते है | कुछ लोग बहुत अच्छे होते है जिंहोने अपनी पूरी जिंदगी में अभी कोई बुरा काम नहीं किया | तथा कुछ लोग बहुत बुरे होते है जिंहोने हमेशा बुरे काम ही किए है |
अच्छे लोगों के दिमाग में अच्छे विचार आते है इसलिए वे पूरी दुनियाँ को अच्छाई ढूंढते है | उसी प्रकार बुरे लोगों के दिमाग में हमेशा बुरे विचार ही चलते रहते है इसलिए वे दुनियाँ में बुराई ढूंढते रहते है |
एक अच्छा व्यक्ति बुरे इंसान में भी अच्छाई निकाल लेता है और एक बुरा व्यक्ति अच्छे इंसान में बुराई ढूंढ लेता है | इसका मतलब यह हुआ कि जिस व्यक्ति की नजरे जैसी होती है उसके लिए दुनियाँ भी उसी ही होती है | यही यथा दृष्टि यथा सृष्टि का सही मतलब है |
यथा दृष्टि यथा सृष्टि से संबन्धित एक पौराणिक कथा
यथा दृष्टि यथा सृष्टि श्लोक का गहराई से अर्थ जानने के लिए आप नीचे दी गयी एक पौराणिक कथा को पढ़ सकते है जिसमें यथा दृष्टि यथा सृष्टि का अर्थ स्पष्ट हो जाएगा |
एक बार कि बात है गुरु द्रोणाचार्य अपने शिष्यों की परीक्षा लेना चाहता था कि कौनसा शिष्य कैसा है | सबसे पहले अपने शिष्य दुर्योधन की परीक्षा लेनी चाहि ताकि यह जान सके कि दुर्योधन का व्यवहार कैसा है |
इसके लिए गुरु आचार्य ने दुर्योधन को अपने पास बुलाया और उसे कहा कि तुम जाओ और समाज में एक अच्छे इंसान को मेरे पास लेकर आओ | दुर्योधन अपने गुरु की आज्ञा मानकर वहाँ से निकल जाता है एक अच्छे आदमी की तलाश में |
दुर्योधन आस पास के गांवों, शहरों, नगरों में घूम लेता है लेकिन उसे कोई अच्छा इंसान ही नहीं मिलता | इस वजह से वह पुन: अपने गुरु के पास लौट जाता है |
अबकी बार गुरु द्रोणाचार्य युधिष्ठिर को अपने पास बुलाता है और उसे कहता है कि तुम जाओ और समाज में एक बुरे इंसान को मेरे पास लेकर आओ | युधिष्ठिर भी अपने गुरु की आज्ञा मानकर वहाँ से निकल जाता है एक बुरे आदमी को ढूँढने के लिए |
युधिष्ठिर भी आस पास के गांवों, शहरों, नगरों में घूमता है लेकिन उसे कोई बुरा इंसान ही नहीं मिलता | इस वजह से वह पुन: अपने गुरु के पास लौट जाता है |
द्रोणाचार्य अपने बाकी शिष्यों पूछता है कि आखिर दुर्योधन कोई अच्छा इंसान क्यों नहीं मिला और युधिष्ठिर को एक बुरा इंसान क्यों नहीं मिला | सभी शिष्य सोच में पड़ जाते है कि ऐसा हो ही नहीं सकता |
तब जाकर आचार्य द्रोण मुस्कुराये और बोले कि जो व्यक्ति जैसा दिखता है और जैसा सोचता है उसे दुनिया में वैसे ही लोग दिखाई पड़ते हैं अर्थात यथा दृष्टि यथा सृष्टि | दुर्योधन को अच्छा व्यक्ति नहीं मिला क्योंकि उसकी सोच अच्छी नहीं है वह अच्छी चीजों में भी बुराई ढूंढ लेता है और ठीक उसी प्रकार युधिष्ठिर की सोच अच्छी है इसलिए वह बुरे व्यक्ति में भी अच्छाइयाँ ढूंढ लेता है |
बात केवल नजरिए कि है जैसी नजर वैसा संसार अर्थात यथा दृष्टि यथा सृष्टि |
यथा दृष्टि यथा सृष्टि पर मेरे विचार
यद्यपि अर्थात यथा दृष्टि यथा सृष्टि का अर्थ ऊपर वर्णित की गयी कथा से स्पष्टतया समझ आ रहा है इसलिए प्रत्येक इंसान को अपनी सोच अच्छी रखनी चाहिए |